
ये अहसास गौरवपूर्ण है कि स्वाधीन भारत के इतिहास में पहली बार देश के सर्वोच्च तीनों संवैधानिक पदों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक विराजित होने जा रहे हैं। संघ के प्रति अपनी सकारात्मक दृष्टि रखने वाले हर व्यक्ति का मन आज पुलकित है, उल्लासित है और गगनचुम्बी कुलॉंचे भर रहा है और यह अत्यन्त ही स्वाभाविक है। निष्चित रूप से सत्ता प्राप्त करना संघ का कभी लक्ष्य नहीं रहा किन्तु भारत अपनी सम्पूर्ण प्राचीन परम्पराओं, मान्यताओं और ज्ञान के आधार पर विश्व का मार्गदर्शन करे यह संघ निर्माता की मंशा जरूर रही। स्वाधीनता के कुछ वर्षों पूर्व ही युगनिर्माता, भविष्यदृष्टा डॉ.केषवराव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर में संघ की स्थापना की। वे लोगों के उपहास का कारण बने, ना जाने कितने ताने, उलाहने उन्हे दिए गए क्योंकि तात्कालीन समय में हिन्दु समाज के संगठन की बात करना ही अपने आप में मजाक समझा जाता था तब डॉ. हेडगेवार के द्वारा किया गया यह उद्घोष कि हॉं मैं कहता हूॅं कि भारत हिन्दु राष्ट्र है और इस भारत माता को परम वैभव के शिखर पर पुनः स्थापित करना है। व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण का भाव, ईमानदारी सिखाई नहीं जा सकती वह अंतरात्मा में विद्यमान होनी चाहिये की शिक्षा, देश का हर नागरिक अपने देश से सबसे ज्यादा प्यार करे और समाज हित के साथ राष्ट्रहित भी उसके लिये सर्वोपरि हो जैसी मान्यताओं पर आधारित व्यक्ति खडा हो देष के लिये काम करे और इसके लिये दैनिक साधना और उसका साधन शाखा।
तो, लिजिये देष के भावी राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविद, देष के भावी उपराष्ट्रपति श्री वैंकैया नायडू और देष के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी देष के सामने हाजिर हैं। संघ की तपोभूमि से निकले ये स्वयंसेवक आज अपने दायित्वों का निर्वहन करने के लिये तैयार हैं। निश्चिंत हो जाना चाहिये अब प्रत्येक भारतवासी को कि उनका देश अब बहुत ही सुरक्षित हाथों में है। इस कथन का यह आषय कतई नहीं लगाया जाना चाहिये कि इसके पूर्व जिनके हाथों में था देष सुरक्षित नहीं था। पूर्व के सभी लोगों ने भी अपना अपना दायित्व पूरी निष्ठा और समर्पण से निर्वहन किया है। लेकिन इस बार बात कुछ और है और वह बात संघ से जुडे होने की है। आज देष का हर स्वयंसेवक और संघ की विचारधारा को समझने वाला हर वह नागरिक, चाहे वह सीधे संघ की शाखा या उसके किसी अनुशांगिक संगठन से ना जुडा हो, उन सभी संघ के प्रचारकों, कार्यकर्ताओं और समर्थकों के चरणों में कोटि कोटि वंदन करना चाहता है जिनके त्याग, बलिदान और तपस्या से आज यह दिन देखना नसीब हुआ है।
1885 में स्थापित कांग्रेस, स्वाधीनता आंदोलन की एकमात्र प्रतिनिधि संस्था, नामचीन नेता और तात्कालीन भारत के नीतिनियंता, देष के नागरिक जिनके पीछे दीवानों की तरह लगे थे और अंग्रेजों को देष से निकालने की जिद भारतीय समाज पकडे था। ऐसी परिस्थिति में उन बडे बडे नामों के सामने राष्ट्रवादी विचारधारा को रखकर और मुस्लिम तुष्टिकरण के नितप्रतिदिन बढते प्रभाव को चुनौति देना आसान नहीं था लेकिन यह कहा जा सकता है कि जब वैचरिक बुनियाद मजबूत हो, लक्ष्य अटल हो और लक्ष्य प्राप्ति के लिये इ्र्रमानदारी से प्रयास करने की मंशा हो तो समय भले ही 85 सालों का लग जाए देष के सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर जब स्वंयसेवक दिखेंगे तो हमारा मन रोमांचित होगा ही। अब भारतवासियों को 15 अगस्त और 26 जनवरी को देश के तीनों राष्ट्र प्रहरी तिरंगे को सलाम करते दिखेंगे। जैसा कि पिछले कुछ सालों से नहीं हो रहा था।
जलने वाले जला करें, चीखने वाले चिल्लाते रहें और तुष्टिकरण कै पैरोकार छाती पीट पीट कर विलाप करते रहें लेकिन ये नए भारत की सच्चाई है जिसका सामना जितनी जल्दी कर लिया जाएगा उतना उन लोगों के लिये अच्छा होगा क्योंकि समाज अब धर्म के आगे भी सोच रहा है। वैचारिक अधिष्ठान का केंद्र निःसंदेह भगवा ध्वज रहा है और रहेगा लेकिन तिरंगे के प्रति सम्मान उससे कम नहीं। भारतीय समाज बिना किसी भेदभाव के राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में लगा रहे और अपने दायित्व का निर्वहन करता रहे। किसी भी प्रकार के छल, कपट, भावनाऐं भडकाने वाले बयान पर ध्यान देने से और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों से अपने को बचा कर रखे। आज हर भारतीय इस बात पर गर्व की अनुभूति कर सकता है कि उनका देष सुरक्षित और मजबूत स्वयंसेवकों के हाथों में है जो अपनी संपूर्ण क्षमता के साथ भारत माता को विष्व में सिरमौर बनाने के लिये काम करेंगे क्योंकि यह उपलब्धि संघ की अनवरत चलने वाली साधना का एक महत्वपूर्ण पडाव माना जा सकता है क्योंकि संघ के स्वयंसेवक एक गीत दोहराते हैं – पथ का अंतिम लक्ष्य नहीं, सिंहासन चढते जाना। सब समाज को लिये साथ में, आगे है बढते जाना।
लेखकः डॉ. क्षितिज पुरोहित, मंदसौर