
निम्बाहेड़ा । डॉ. भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय बिहार के डॉ. कौशलकिशोर चौधरी ने कहा कि वैदिक शिक्षा के विकास से ही सभी समस्याओं का समाधान संभव है, ऐसे में निंबाहेड़ा जैसे छोटे से स्थान पर स्थापित किए जा रहे श्री कल्लाजी वैदिक विश्व विद्यालय के लिए प्रदेशवासी साधुवाद के पात्र है।
डॉ. चौधरी रविवार को कल्याण लोक स्थित वैदिक विश्व विद्यालय परिसर में पारम्परिक ग्रंथो के ग्रंथालयों की राष्ट्र निर्माण में भूमिका विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होनें कहा कि हमारी वैदिक परम्परा के कारण ही भारत कभी विश्व गुरू रहा है, लेकिन कालांतर में यह वैदिक संस्कृति लुप्त होने लगी है, जिसे बचाने के लिए यहां किया जा रहा प्रयास स्तुत्य है। उन्होनें सुझाव दिया कि इस विश्व विद्यालय की और से श्री कल्लाजी के नाम से विश्व विद्यालय को जोड़ते हुए डोक्यूमेंट्री फिल्म बनाने के साथ ही प्रतिवर्ष वैदिक संगोष्ठियों का आयोजन किया जाए। उन्होनें कहा कि परिसर में दुर्लब जड़ी बुटियों के पौधे लगाकर आयुर्वेद शिक्षा को बढ़ावा देने में वे और उनकी टीम भी हर संभव सहयोग करेगी। संगोष्ठी की विशिष्ट अतिथि डॉ. सुशीला लड्ढा ने लुप्त होती वैदिक संस्कृति के संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासो की प्रशंसा करते हुए कहा कि इसके माध्यम से राष्ट्र आराधना और राष्ट्र देवो भवे को महत्व मिलेगा। उन्होनें कहा कि ग्रंथ हमें जीवन की प्रेरणा देते है, इसलिए राष्ट्रीय अवधारणा के अनुरूप इस संगोष्ठी की विशेष उपादेयता है। शिक्षाविद गणेशलाल चपलोत ने प्राचीन ज्ञान संस्कृति को अक्षुण बनाए रखने के लिए इस विश्व विद्यालय की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इससे भारत एक बार विश्व गुरू बनने की और अग्रसर होगा।
जीवाजीराव विश्व विद्यालय के ग्रंथालय एवं सूचना विज्ञान के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. प्रेमप्रकाश पंत ने पुस्तकालयों की युग युगांतर यात्रा पर शैक्षिक वृतचित्र के माध्यम से पाषाण युग से लेकर काष्ट युग, प्रिंटिंग प्रेस एवं वर्तमान तकनीकि युग पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए प्राचीन पाण्डुलिपियों से लेकर ई लाईब्रेरी तक की यात्रा की शानदार प्रस्तुति देते हुए कहा कि डॉ. रंग नाथन के योगदान से ही देश में पुस्तकालयों के महत्व के बढ़ावा मिला है। प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए संस्थान के कैलाशचन्द्र मून्दड़ा ने आगंतुक अतिथियों का भाव भीना स्वागत कर काशी विश्व विद्यालय के 8 छात्रों द्वारा अष्ट दिग्पाल के रूप में यहां के ग्रंथागार को संजोने, अतिथियों द्वारा इस विश्व विद्यालयों को संबल प्रदान करने की अपील की। उन्होनें कहा कि ज्ञान का भंडार ही ग्रंथागार है, जिसकी महत्ता को प्रकट कर उपादेयता को सिद्ध करना होगा। प्रारंभ में अतिथियों द्वारा वैद मूर्ति ठाकुर श्री कल्लाजी की पूजा अर्चना करने के साथ बटुकों एवं आचार्या द्वारा स्वस्ति वाचन किया गया।
इस मौके पर सुखाड़िया विश्व विद्यालय के डॉ. प्रभात कुमार ने यहां के ग्रंथागार के लिए चारो वेद, पुराण व अन्य ग्रंथो को वेब साईड के माध्यम से भेंट करने की घोषणा की। संस्थान के प्रवक्ता ने वैदिक विश्व विद्यालय की रूप रेखा एवं वर्तमान प्रगति तक अवगत कराते हुए आगंतुकों से आग्रह किया कि वे अपने क्षेत्र के वैदिक एवं ग्रंथागार से जुड़े विद्वानों को इस विश्व विद्यालय से जोड़कर इसे विश्व स्तर का बनाने में सहयोग करें।
द्वितीय सत्र में शोध छात्र विजेताचार्य मालवीय ने वैदिक वांगमय में विज्ञान को पॉवर पोईंट प्रजेन्टेशन के माध्यम से प्रस्तुत करते हुए कहा कि वेद ही शब्द रूपी ब्रम्ह है, जिसमें अनेको रहस्य छिपे हुए है। उन्होनें यजुर्वेद में भौतिक, अग्नि, वेमानिकी, मधु विद्या, पर्जन्य एवं वृष्टि विज्ञान आदि विषयों पर प्रकाश डाला। सागर विश्व विद्यालय के डॉ. अजीत जैन ने ग्रंथा के ज्ञान को समाज तक पहुंचाकर लाभान्वित करने का आव्हान किया। एनसीईआरटी के डॉ. अनिल कुमार ने डीजीटल आधार पर ग्रंथो को महत्व देने का आव्हान किया। निमराणा विश्व विद्यालय के डॉ. पवन अग्रवाल, काशी विश्व विद्यालय के डॉ. रामकुमार दांगी, प्रशांत कुमार, माखनलाल चतुर्वेदी विश्व विद्यालय के डॉ. आशीष द्विवेदी ने अपने शोध पत्र के माध्यम से प्राचीन ग्रंथो को जनसंचार माध्यमों से आमजन तक पहुंचाने पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसके लिए जनसंचार क्रांति को वैदिक शिक्षा से जोड़ना होगा। डॉ. संजीव सर्राफ ने संगोष्ठी का शानदार संचालन करते हुए कहा कि इस विश्व विद्यालय के ग्रंथागार को सुव्यवस्थित करने का दायित्व काशी विश्व विद्यालय के छात्रों को मिला है, जिनके सहयोग से इसे विश्व स्तर का बनाने का प्रयास होगा। संगोष्ठी में दिल्ली विश्व विद्यालय के शोधार्थी चवन, सुखाड़िया विश्व विद्यालय के प्रभात सिंह, डॉ. रामकुमार दांगी सहित अन्य वक्ताओं ने संबोधित करते हुए ग्रंथागारों की राष्ट्रीय भूमिका के महत्व को प्रतिपादित किया। प्रारंभ में संस्थान सचिव ने अतिथियों का स्वागत किया। इस मौके पर संस्थान की और से आगंतुक अतिथियों को तुलसी माला, उपरणा ओढाकर वैदिक शिक्षार्थी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। राष्ट्रीय संगोष्ठी में छतरपुर से रोशनी दांगी, डॉ. रानी जैन, प्रकृति दांगी, प्रशांत कुमार, अनिल कुमार, नितिश, पंकज, अजीत, चन्द्रशेखर, निधिश त्रिपाठी सहित देश के कई विश्व विद्यालयों के अनुभवी पुस्तकालया अध्यक्ष, उदयपुर से शोधार्थी छात्राएं, संस्थान के पदाधिकारी, आचार्य, बटूक एवं अन्य लोग मौजूद थे।