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गृहमंत्री के नए निर्देश पर और ज्यादा राजनीति की शिकार होगी पुलिस…!

पुलिस पहले से ही राजनीति का शिकार थी

मंदसौर संदेश/मंदसौर

लेखक-विजय शर्मा

डीजीपी से लगाकर आईजी, डीआईजी एवं जिलों के पुलिस अधीक्षक चाहे वह नकारते हो कि पुलिस कार्यवाही में राजनीति कहीं हस्तक्षेप नहीं करती है परन्तु पुलिस कार्यवाही में राजनीति का इतना हस्तक्षेप है कि ऊपर से नीचे तक के सारे पुलिस अधिकारी परेशान है । ऐन-केन-प्रकरेण नेताओं के आदेशों को झेलना पड़ता है और ऐसी स्थिति में कई बार नेताओं के इशारों पर निर्दाष लोगों के खिलाफ पुलिस को झूठी कार्यवाही भी करना पड़ती है इन तमाम परिस्थितियों को लेकर धीरे-धीरे आम जनता में पुलिस की छबि धूमिल हो रही है ।
मंदसौर जिले में किसान आंदोलन को लेकर कई पुलिस वालों की पीटाई हुई है यह कोई अतिश्योक्ति नहीं है । यह तो मीडिया की मेहरबानी है कि जिन पुलिस वालों की किसानों ने जमकर पिटाई की है उन पुलिस वालों के नाम उजागर नहीं होने दिए । वर्ना पुलिस की छबि और धूमिल हो जाती है ।

यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि किसान आंदोलन के दौरान आई.जी.इंटेलिजेंस के मकरंद देउस्कर ने 9 जून 2017 को अपना एक बयान जारी कर बताया था कि पूरे किसान आंदोलन में अभी तक 231 एफआईआर दर्ज हुई है, साथ ही 108 पुलिसकर्मी घायल हुए है । इस आंदोलन में हुए नुकसान में 27 सरकारी एवं 191 निजी बड़े-छोटे वाहनों को नुकसान हुआ है । साथ ही 3 पुलिस थानों एवं 8 पुलिस चौकियों को भी नुकसान पहुंचा है ।

किसान आंदोलन के दौरान मंदसौर जिले में अधिकांश जगहों पर किसानों के टारगेट पर पुलिस रही । मंदसौर में किसान आंदोलन के दौरान पुलिस की गोली से पांच किसानों की मौत हुई जिसके कारण मध्यप्रदेश में पुलिस की छबि काफी खराब हुई क्योंकि जब किसानों पर गोली चली ऐसी स्थिति में तात्कालीन पुलिस अधीक्षक एवं तात्कालीन कलेक्टर दोनों ने मध्यप्रदेश के गृहमंत्री भूपेन्द्र सिंह को गलत जानकारी दी कि पुलिस ने किसी प्रकार की गोली नहींचलाई । ऐसी स्थिति में मध्यप्रदेश का मुखिया (गृहमंत्री) ने भोपाल से यह बयान दे डाला किसान पुलिस की गोली से नहीं मरे..! इस  बयान के बाद गृहमंत्री के साथ ही पूरी सरकार की किरकिरी हुई और इस  प्रकार की बयानबाजी के कारण प्रदेश के किसानों में सरकार और पुलिस के प्रति जबरदस्त आक्रोश पनपा और उसके बाद किसानों के आंदोलन ने एक उग्र रूप धारण किया ।

अब मध्यप्रदेश में किसान आंदोलन का एक माह बीत चुका है । 6 जुलाई को देश के 150 किसान संगठनों ने मंदसौर जिले से मृतक किसानों को श्रद्धांजलि देकर वापस आंदोलन की चेतावनी दी थी तो वहीं दूसरी ओर मल्हारगढ़ में कांग्रेस ने जेल भरो आंदोलन की चेतावनी दी थी । दोनों आंदोलन पूरे हुए ।

अब मंदसौर जिला ही नहीं संपूर्ण मध्यप्रदेश में पुलिस अपनी छबि सुधारने में लगी हुई है और इसके लिए विशेष पहल प्रदेश के गृह मंत्री श्री भूपेन्द्र सिंह ने की है । प्रदेश में चल रहे किसान आंदोलन को लेकर गृह मंत्री, डीजीपी, आईजी, डीआईजी, एसपी यहां तक कि एडीशनल एसपी, सीएसपी सभी से संपर्क बनाकर लगातार मंथन कर रहे है और किसी भी घटनाक्रम की पूरी पुष्टि होने के बाद ही बयान बाजी कर रहे है ।

गृहमंत्री भूपेन्द्र सिंह ने अब नया तरीका निकाला है । इस तरीके में उन्होंने प्रदेश के सभी थानों पर प्रत्येक माह के प्रथम सप्ताह में उस थाना क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों और गणमान्य नागरिकों की बैठक करने के निर्देश जारी किए । वैसे गृहमंत्री का यह सोचना है कि थाना क्षेत्र में जनप्रतिनिधियों एवं गणमान्य नागरिकों से प्रत्येक माह के प्रथम सप्ताह में संवाद होने के कारण पुलिस की कार्यशैली और कानून व्यवस्था से संबंधित मुद्दों पर जन सामान्य के सुझाव और सहयोग मिलेगा । वैसे तो इस निर्देश के पालन में आज की स्थिति में कोई भी गणमान्य नागरिक थाना परिसर में चढ़ना नहीं चाहता है और सारे झंझटों से दूर रहना चाहता है ।

पूर्व में भी उल्लेख किया जा चुका है कि थानों में राजनीति हस्तक्षेप इतना है कि फरियादी अगर किसी अपराधी के खिलाफ शिकायत करने आता है उससे पहले ही थानों पर थाना प्रभारियों के पास फोन चले जाते है, देख लेना- रिपोर्ट करने वाला बदमाश है, और रिपोर्ट करने वाला को सताने वाला हमारी पार्टी का कार्यकर्ता है… ऐसी स्थिति में पुलिस उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर पाती है और यही कारण है कि आज अपराध दिनों दिन बढ़ते जा रहे है ।

गृहमंत्री के इस आदेश से माह के प्रथम सप्ताह मेंजिस प्रकार थाना प्रभारी जनप्रतिनिधियों से संवाद करेंगे उससे थानों में राजनीति हस्तक्षेप और ज्यादा बढ़ जाएगा । आज की स्थिति में कई ऐसे उदाहरण है कि आपराधिक प्रवृŸा के लोग जनप्रतिनिधियों के साथ थाने में जाते है, थाना प्रभारी के सामने लगी हुई कुर्सीयों पर बैठते है और विवश होकर थाना प्रभारी को जनप्रतिनिधि के सम्मान में चाय मंगाना पड़ती है और आपराधिक प्रवृŸा के लोग भी उनके साथ चाय पीकर बाहर निकलते है और ऐसी स्थिति में वह एएसआई, प्रधान आरक्षक, आरक्षक से हंसते हुए हाथ मिलाते है और उन पर रूतबा झाड़कर जनप्रतिनिधि की गाड़ी में बैठकर वापस आ जाते है…!

(लेखक-दैनिक मंदसौर संदेश के वरिष्ठ पत्रकार है )

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