
लेखकः विजय शर्मा
सदियों से चला आ रहा है कि जब कोई बहू ससुरजी की खास हो जाती है तो उसके बाद बहू घर में न तो सास की परवाह करती है! न पति की परवाह करती है ! और न ननंद, न देवर किसी की भी परवाह नहीं करती है ! क्योंकि वह समझती है कि उसके कब्जे में घर का मुखिया है ।
इसी प्रकार मंदसौर जिले में पदस्थ थानेदार जब जिले के मालिक से सेटिंग कर लेता है तो न वो माईक-टू की परवाह करता है ! न माईक-थ्री की परवाह करता है ! और न मीडिया की परवाह करता है ! अगर थोड़ा बहुत डरता है तो मात्र क्षेत्रीय विधायक से! या फिर संगठन के पॉवरफुल पदाधिकारी से ! यह भी ऐसा नहीं है कि बहुत डरता हो थोड़ा सा अंतर पड़ता है ।
इसी कड़ी में मंदसौर जिले की पुलिस सेटिंग होने के बाद तगड़ा काम कर रही है । मछली पकड़ने पर 15 अगस्त तक प्रति

बंध है तो ऐसी स्थिति में शहर कोतवाली से लगाकर सीतामऊ और सीतामऊ से लगाकर चंबल किनारे जितने भी थाने पड़ रहे है सब थानों में थानेदार मछली पकड़ रहे है । मछली पकड़ने के बाद कोई 35 हजार में सेटिंग कर रहा है ! तो कोई सीतामऊ में 40 हजार में सेटिंग कर रहा है ! अच्छी बात है कम से कम सेटिंग करके भी पुलिस अपना कŸार्व्य तो निभा रही है ।
इसी प्रकार इन दिनों पुलिस लम्बे समय से अवैध शराब पकड़ रही है, अवैध शराब पकड़ने में पुलिस को बड़ी सफलताएं और सेटिंग का मौका मिल रहा है । कभी किसी का पूरी की पूरी ट्रेक्टर-ट्राली जो 200 पेटियों से भरी रहती है वह किसी खेत में जाकर काली मिट्टी में धंस जाती है और ट्रेक्टर चालक, शराब मालिक सब फरार हो जाते है ! तो कभी पुलिस ट्रेक्टर का पीछा करती है तो ट्रेक्टर किसी गांव के किनारे जाकर पलटी खा जाता है, किसी के चोंट नहीं आती है और शराब जप्त हो जाती है..!
शामगढ़ पुलिस को भी अवैध शराब पकड़ने में ऐतिहासिक सफलता मिली और शराब से भरा हुआ कंटेनर पकड़ा है । कहानी मीडिया की नहीं कहानी स्वयं पुलिस की है कि शराब पंजाब से भरी और महाराष्ट्र जा रही थी । अब ऐसी स्थिति में पंजाब से 56 लाख की शराब भरकर चला कंटेनर में मात्र 1 ड्रायवर यह संभव हो सकता है क्या ? या तो इस कंटेनर की पायलेटिंग करने वाले भी हो सकते है ? क्योंकि मंदसौर, नीमच, रतलाम, आलोट, शाजापुर, देवास यहां तक कि ग्वालियर, भैंसोदामंडी आदि क्षेत्रों का इतिहास है कि तस्कर अगर तस्करी की गाड़ी भरता है तो वह एक ड्रायवर रखता है और एक ड्रायवर रखकर पायलेटिंग वाली गाड़ी में तीन-चार ड्रायवर, मालिक के साथ ही 10-20 लाख रूपये नगद लेकर चलता है । आज तक का इतिहास रहा है कि तस्करों की गाड़ियां एक स्थान से दूसरे पहुंचने वाले स्थान तक एक ही ड्रायवर कभी भी नहीं छोड़कर आया है ।
खैर यह सब पुलिस से छिपा हुआ नहीं है हर चीज इस जिले के चप्पे-चप्पे की पुलिस को जानकारी है क्योंकि इस जिले में नीचले स्तर पर इतने सेटिंगबाज पुलिस महकमे में पदस्थ है कि जिनका कोई ठिकाना नहीं है…! कई सेटिंगबाजों को देखो तो वह आज की स्थिति में उनके घरों के सामने 10-10, 20-20 लाख की गाड़ियां, एक नहीं दो-दो, तीन-तीन खड़ी रहती है ! उनके प्लाट है, उनके मकान है, मकान कहना न्यायोचित नहीं है बंगले की उपाधि भी दी जा सकती है…!
डोडाचूरी भी हर थानों में पकड़ी जा रही है । सबसे बड़ी विशेषता है कि तस्करों पर पुलिस का तगड़ा प्रहार है । पुलिस इसके लिए बधाई की पात्र है परन्तु तस्करों की गाड़ियां पकड़ाते ही गाड़ियों से मौका पाकर मुख्य तस्कर फरार हो जाते है ! या तस्कर के खास लोग फरार हो जाते है ! मुश्किल से तस्करों की गाड़ियों से एक-एक, दो-दो लोग ही पकड़ में आते है ! न्यायालय में चालान पेश होते है, पुलिस रिमांड मांगती है, न्यायालय से बकायदा पुलिस को पीआर मिलती है, पूछताछ में क्या गुल खिलती है यह आज तक किसी भी प्रकरण में ओपन नहीं हुए ? बस तस्कर पकड़ाये है, माल पकड़ाया है, इसका प्रेस नोट पुलिस जारी कर देती है और मीडिया उसे प्राथमिकता से प्रकाशित कर देती है । हर पुलिस के प्रेस नोट में अंधेरे का लाभ पाकर, पुलिस को देखकर तस्करों के भागने का नाम मीडिया को जारी होता है, मीडिया उन नामों को प्राथमिकता से प्रकाशित करती है, इसमें मीडिया की भी मजबूरी है कि मीडिया को सनसनीखेज समाचार चाहिए ! मीडिया भी अनभिज्ञ रहती है कि अंधेरे का लाभ, पुलिस को देखकर गाड़ी छोड़कर भागने वालों के साथ पुलिस ने क्या खेल किया यह कभी ओपन नहीं होता है…! यह जरूर है कि अगर मीडिया किसी मामले में पीछे पड़ जाती है तो फिर बंद लिफाफा पहुंच जाता है…!
(लेखकः दैनिक मंदसौर संदेश के वरिष्ठ पत्रकार है )