
नई दिल्ली । उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद मालिकाना विवाद में अंतिम सुनवाई पांच दिसंबर से करने का आज फैसला किया और साथ ही स्पष्ट किया है कि किसी भी परिस्थिति में इसमें स्थगन नहीं दिया जायेगा। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की तीन सदस्यीय विशेष खंडपीठ करीब डेढ़ घंटे की गहन मंत्रणा के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई शुरू करने के बारे में सहमति पर पहुंची।
न्यायालय ने इस मामले के सभी पक्षों से कहा कि इसमें शामिल दस्तावेज, जिन पर वे निर्भर करेंगे, का 12 सप्ताह के भीतर अंग्रेजी में अनुवाद करायें क्योंकि ये आठ अलग अलग भाषाओं में हैं। इसके अलावा, पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि वह इस मालिकाना हक के वाद के निर्णय के लिये उच्च न्यायालय में दर्ज साक्ष्यों का दस सप्ताह के भीतर अंग्रेजी में अनुवाद कराये। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि को तीन हिस्सों में विभक्त करके इसे सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाडा और राम लला के बीच बांटने की व्यवस्था दी थी।
शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि सभी पक्षों को न्यायालय द्वारा निर्धारित समय सीमा का पालन करना होगा और किसी भी परिस्थिति में स्थगन नहीं दिया जायेगा। राम लला की ओर से वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन और उप्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले की शीघ्र सुनवाई करने पर जोर दिया जबकि दूसरे पक्षकारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अनूप जार्ज चौधरी और राजीव धवन अगले साल जनवरी से पहले इस पर सुनवाई शुरू करने के पक्ष में नहीं थे।