

दलौदा शुगर मिल की 366 बीघा 3 बीसवा 3 आरी शासकीय भूमि का तगड़ा खेल करना चाहते थे पूर्व कलेक्टर स्वतंत्र कुमार सिंह एवं उनकी टीम । ओ.आई.सी. कौन था ? तारीख पेशीयाँ कौन करते थे ? सौदे डील कौन करते थे ? यह सब कलेक्टर स्वतंत्र कुमार सिंह और उनकी दलाली करने वाली टीम को ही जानकारी थी । 2016 में भी इस जमीन में तगड़ा खेल होने वाला था परन्तु दैनिक मंदसौर संदेश 10 जून 2016 एवं 11 जून 2016 के अंक में धज्जियां उड़ाते हुए कलेक्टर स्वतंत्र कुमार सिंह और उनके दलालों के सपनों को साकार नहीं होने दिया क्योंकि उस समय भी 10 करोड़ में डीलींग होने का मामला बाजार में उछला था और मामले को गुपचुप तरीके से निपटाने का पूरा का पूरा षड्यंत्र चल रहा था ।
शुगर मिल की शासकीय जमीन कैसे नीलाम हुई यह तो बड़ा रहस्य है परन्तु तात्कालीन कलेक्टर तथा शुगर मिल के बीच हुआ सशर्त अनुबंध 1976 में राजस्व रिकॉर्ड से गायब हुआ । अनुबंध गायब होने के बाद इस शासकीय जमीन की हेराफेरी चालू हुई ।
दलौदा शुगर मिल की जमीन विगत वर्षों में जबलपुर में नीलाम हुई थी, जबलपुर की नीलामी में दो पार्टियाँ शामिल हुई थी । एक पार्टी में आंजना कंस्ट्रक्शन कंपनी के साथ मंदसौर निवासी तय्यब बोहरा एवं स्वर्गीय मजहर बोहरा शामिल थे । दूसरी पार्टी में सुनिल मेहता एवं मंदसौर जिले की शासकीय भूमियाँ, नदी-नालों की भूमियाँ हड़पने वाला कुख्यात भू-माफिया भी शामिल था । परन्तु नीलामी की बोली में यह भूमि आंजना ग्रुप एवं तैय्यब बोहरा-मजहर बोहरा के नाम हुई थी । सुनिल मेहता एण्ड कंपनी को यह जमीन नीलामी में नहीं मिली ।
वैसे ग्वालियर स्टेट के स्वर्गीय महाराज जीवाजी जी राव सिंधिया के कार्यकाल में यह जमीन कुछ किसानों से और कुछ सरकारी लेकर इस जमीन पर शुगर फैक्ट्री स्थापित की गई थी । शुगर फैक्ट्री लगातार चलती रही, कभी मुनाफे में तो कभी घाटे में । उसके बाद शुगर फैक्ट्री में महिदपुर रोड़ शुगर फैक्ट्री के जनरल मैनेजर कंचल दलौदा शुगर फैक्ट्री के महाप्रबंधक बने । कंचल के जमाने से ही शुगर फैक्ट्री की इस शासकीय जमीन के लिए राजस्व रिकॉर्ड में पटवारी, गिरधावर, नायब तहसीलदार, तहसीलदार सब हेराफेरी करने लगे । पुराने राजस्व रिकॉर्ड में यह उल्लेख है कि शुगर फैक्ट्री के लिए यह जमीन सरकारी है और लीज पर दी गई है ।
ऐन-केन-प्रकरेण राजस्व रिकॉर्ड में पटवारी से लगाकर तहसीलदार, एसडीओ ने बिना किसी आदेश,बिना किसी प्रकरण के उक्त शासकीय जमीन पर शुगर फैक्ट्री का नाम चढ़ा दिया । जब इस जमीन पर शुगर फैक्ट्री का नाम चढ़ा उसके बाद इस फैक्ट्री के महाप्रबंधक कंचल ने राजस्व रिकॉर्ड निकलवाकर एक लम्बा खेल खेला । और इस खेल में कंचल ने सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया से 65 लाख का लोन शुगर फैक्ट्री के लिए प्राप्त किया । 65 लाख का लोन लेने के बाद धीरे-धीरे फैक्ट्री में उतार-चढ़ावा आया और यह स्थिति रही कि फैक्ट्री बंद हो गई । बैंक ने अपनी वसूली के लिए वाद दायर किया और जबलपुर डी.आर.टी.ए. कोर्ट ने वर्ष 2006 में बैंक वसूली के आधार पर जमीन की नीलामी की गई थी । नीलामी में आंजना कंस्ट्रक्शन कंपनी, तैय्यब बोहरा, स्व.मजहर बोहरा एवं सुनिल मेहता कंपनी शामिल हुई थी । बैंक वसूली के आधार पर इस शासकीय जमीन की नीलामी हो गई । नीलामी के बाद उक्त भूमि पर कब्जे का विवाद चला । कब्जे को लेकर हाईकोर्ट से लगाकर आयुक्त, उपायुक्त, कलेक्टर, एसडीएम, तहसीलदार, नायब तहसीलदार सबको आपिŸायाँ दर्ज कराई गई । जहां-जहां इस शासकीय भूमि के नामांतरण आदि की कार्यवाही चली वहां-वहां लगातार आपिŸायाँ दर्ज कराई । इसके बाद इंदौर हाईकोर्ट में पीटीशन क्रमांक 25/2001 दायर की गई । दलौदा तहसील में भी प्रकरण क्रमांक 109/अ-6/2009-10 नामांतरण के लिए प्रकरण पेडिंग चल रहा है । इसके साथ ही आंजना ग्रुप ने चुपचुप अपर आयुक्त महोदय उज्जैन संभाग उज्जैन के न्यायालय में भी इस जमीन के नामांतरण को लेकर एक अपील की थी जिसका प्रकरण क्रमांक 198/2014-15 था । परन्तु उज्जैन मेंपदस्थ अपर आयुक्त जैन ने उक्त विवादित भूमि को भ्रष्टाचार के आधार पर गोल-मोल आदेश कर नामांतरण करने हेतु कलेक्टर मंदसौर को फाईल भेज दी क्योंकि प्रकरण में स्पष्ट आदेश नहीं था ऐसी स्थिति में कलेक्टर ने भी उक्त प्रकरण को तहसील कार्यालय दलौदा में भेज दिया ।
दलौदा शुगर मिल की जमीन को लेकर विधायक महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा ने विधानसभा में इस मामले में प्रश्न उठाया तब माननीय उद्योगमंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने विधानसभा में जानकारी दी थी कि जीवाजीराव शुगर मिल कंपनी लिमिटेड दलौदा जिला मंदसौर को शक्कर कारखाना लगाने हेतु 366 बीघा 3 बीसवा 3 आरी भूमि तात्कालीन ग्वालियर सरकार द्वारा कलेक्टर मंदसौर को मिसलेनियस नंबर 21/2001/7 एवं 12/51/11 में आदेश दिनांक 6.7.1 950 से ग्राम धुंधड़का, बानीखेड़ी व दलौदा की भूमि निम्न शर्तों पर आवंटित की गई थी ।
शर्त क्रमांक 1- लगान वक्त पर जमा कराना होगा । खिलापवर्जी जप्त वसूली होगी ।
शर्त क्रमांक 2- मियांद पट्टा ताकायमी कारखाना व ईमारत होगी । अंदर मियांदी पट्टा लगाने में वृद्धि नहीं होगी ।
शर्त क्रमांक 3- कारखाना बंद होने और ईमारत कायम न रहने पर जमीन वापसी करना होगी और इसके लिए एहकाम दफा 40 कानून हुसूल आराजी काबिल पाबंदी होंगे ।
शर्त क्रमांक 4- यह आराजी मुताबिक कानूनन हुसूल आराजी जिस काम के लिए दी गई है उसी कार्य में इस्तेमाल करना होगी और इस बारे में राज्य नियमों को तामिल व पाबंदी अनिवार्य होगी ।
इसको तात्कालीन मैनेजर जीवाजीराव शुगर मिल कंपनी लिमिटेड द्वारा दिनांक 21.1.1945 द्वारा इकरार नामे के माध्यम से प्रकरण क्रमांक 12/51/दखख में न्यायालय नायब सुबा मंदसौर के समक्ष स्थान सहित इकरार किया ।
सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि राजस्व रिकॉर्ड में सन् 1950 में जो एग्रीमेन्ट शुगर मिल एवं कलेक्टर मंदसौर के बीच हुआ था वह एग्रीमेन्ट शासकीय रिकॉर्ड से गायब हो गया और इस संबंध में विधानसभा में माननीय उद्योग मंत्री श्री कैलाश विजयवर्गीय ने इस बात को स्वीकार किया है कि पत्र क्रमांक 1530/सिविल वाद/11, दिनांक 20.10.2011 को कलेक्टर ने एक दल गठित किया था एवं दल ने जांच में यह पाया कि 1950 में जो एग्रीमेन्ट हुआ था वह राजस्व रिकॉर्ड से गायब हो गया है । इस बात को पूरे राजस्व विभाग ने स्वीकार किया है । प्रभारी अधिकारी भू-अभिलेख एवं अधीक्षक भू-अभिलेख द्वारा दिनांक 17.10.2011 को न्यायालय तहसीलदार दलौदा जिला मंदसौर ने भी प्रकरण क्रमांक 109/अ-6/2009-10 से आदेश किया है कि कंपनी की विवादित से भूमि से किसी प्रकार का राजस्व प्राप्त नहीं होता है तथा राजस्व अिलेखों में कंपनी ने मनमाने ढंग से इंटरकोलेशन करवा लिया गया है ।
राजस्व रिकॉर्ड ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि उक्त एग्रीमेन्ट (राजस्व रिकॉर्ड रूम) जिला मंदसौर द्वारा अपने पत्र क्रमांक 498/कॉपिंग/2003 मंदसौर, 20.6.2003 में लेख किया गया कि दलौदा शुगर मिल की लीज डीड प्रकरण जिला राजस्व अभिलेखागार के जावक क्रमांक 12/5/5111, दिनांक 18.10.1976 से सत्य प्रतिलिपि हेतु प्रतिलिपि शाखा को भेजा गया था । किन्तु प्रतिलिपि शाखा से किस शाखा को प्राप्त हुआ यह शोध नहीं हो पा रहा है और स्पष्ट कहा कि इस शाखा से जुड़े कर्मचारियों के विरूद्ध उŸार दायित्व निर्धारित किया जाकर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जा रही है परन्तु आज तक उन कर्मचारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई ।
राजस्व रिकॉर्ड से सशर्त अनुबंध गायब होने के बाद राजस्व रिकॉर्ड में हेराफेरी कर लीज की भूमि को शुगर मिल की भूमि राजस्व रिकॉर्ड में पटवारी द्वारा चढ़ाई गई ।
क्यों उठा दलौदा शुगर मिल का पुनः मामला..?
समाचार सूत्रों का यह कहना है कि दलौदा शुगर मिल की शासकीय भूमि को लेकर हाल ही में भोपाल में बवाल खड़ा हुआ है । मामला यह भी सामने आया है कि भोपाल में यह मांग उठी है कि पूर्व कलेक्टर स्वतंत्र कुमार सिंह के कार्यकाल एवं कारनामों की उच्च स्तरीय जांच कराई जाये । इसी कड़ी में दलौदा शुगर मिल की जमीन का मामला भी शामिल है ।
उधर समाचार सूत्रों ने जानकारी दी है कि फूड प्रोसेसिंग पार्क के लिए दिल्ली से मंजूरी हो गई है एवं भोपाल के गलियारे से नवागंतुक कलेक्टर श्री ओमप्रकाश श्रीवास्तव पर जमीन आवंटन का दबाव पड़ रहा है। अब ऐसी स्थिति में दलौदा शुगर मिल की जमीन को लेकर कौन ओ.आई.सी कौन है ? कौन इस जमीन की फाईल को डील कर रहा था ? कौन हाईकोर्ट जाता था ? कौन उज्जैन जाता था ? कौन ग्वालियर जाता था ? इसकी जानकारी किसी को नहीं है ।
नियम क्या बोलते है..?
कलेक्टर श्री श्रीवास्तव भी फाईल को बारिकी से देख रहे है
राजस्व नियम यह बोलता है कि अगर फूड प्रोसेंसिंग पार्क के लिए जमीन आवंटन करना है तो ऐसी स्थिति में दलौदा शुगर मिल को दी गई लीज डीड को शर्तों के आधार पर निरस्त करना पड़ेगा । शर्तों के आधार पर निरस्त करने के बाद ही उक्त भूमि का आवंटन फूड प्रोसेसिंग पार्क के लिए किया जा सकेगा । वहीं दूसरी ओर राजस्व रिकॉर्ड में जो फर्जीवाड़ा किया है उस फर्जीवाड़े के आधार पर आंजना कंस्ट्रक्शन केसुन्दा (छोटीसादड़ी) भी जमीन का दावा कर रहा है ।
वैसे नवागंतुक कलेक्टर श्री ओमप्रकाश श्रीवास्तव मंजेमंजाये खिलाड़ी है । वर्तमान में कार्यभार ग्रहण करने के बाद वह कार्यालय में तीन-चार दिन बैठे है और तीन-चार दिन में कलेक्टर कार्यालय में दलाली करने वाले एवं फर्जी काम करने वालों के हौंसले परस्त हो गए है । उसका कारण ही यही है कि अभी तक कलेक्टर श्री ओमप्रकाश श्रीवास्तव के सामने जो भी फाईल गई है उन फाईलों को कलेक्टर ने इतनी बारिकी से देखा है कि जिसकी कल्पना कलेक्टोरेट के कर्मचारियों एवं अधिकारियों ने नहीं की थी…!
(लेखक दैनिक मंदसौर संदेश के वरिष्ठ पत्रकार है)